ढूंढ़ते रहते हैं सब लोग लकीरों में जिसे,
वो मुकद्दर भी सिकंदर का पता पूछता है।
जब ये तय कर ही लिया है
कि सफर करना है,
फिर किसी दिल में भला
किस लिये घर करना।
वक़्त की कीमत जो समझते हैं,
सफलता का स्वाद भी वही चखते हैं।
हर मील के पत्थर पर लिख दो यह इबारत,
मंज़िल नहीं मिलती नाकाम इरादों से।
बदल जाओ वक्त के साथ
या वक्त बदलना सीखो,
मजबूरियों को मत कोसो
हर हाल में चलना सीखो।
ये और बात कि आँधी हमारे बस में नहीं,
मगर चिराग जलाना तो इख्तियार में है।
माना नाकामियाँ इंसान को तोड़ देती हैं,
पर जीवन की राह को नया मोड़ देती हैं,
जो करते रहते हैं जी-जान से कोशिश,
असफलताएं उनका पीछा छोड़ देती है।
वो छोटी छोटी उड़ानों पे गुरुर नहीं करता,
जो परिंदा अपने लिये आसमान ढूँढ़ता है।
तारों में अकेला चाँद जगमगाता है,
मुश्किलों में अकेला इंसान डगमगाता है,
काँटों से घबराना मत मेरे यारो, क्योंकि
काँटों में ही अकेला गुलाब मुस्कुराता है।
कुछ नहीं मिलता दुनिया में मेहनत के बगैर,
मेरा अपना साया भी धूप में आने से मिला।
भरी बरसात में उड़ के दिखा माहिर परिंदे,
सूखे मौसम में तो तिनके भी सफर कर लेते हैं।
पानी को बर्फ़ में बदलने में वक्त लगता है,
सूरज को निकलने में वक्त लगता है,
किस्मत को तो हम बदल नहीं सकते,
हौसलों से किस्मत बदलने में वक्त लगता है।
जिनके हौसले बुलंद होते हैं,
वही ऊंचाइयों तक पहुँचते हैं।
ठहर के पाँव के काँटे निकालने वाले,
ये होश है तो जुनूँ कामयाब क्या होगा।
आँखों में मंजिल थी,
गिरे और सँभलते रहे,
आँधियों में क्या दम था,
चिराग हवा में भी जलते रहे।
मेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा,
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा।
मंज़िल तो मिल ही जाएगी भटक कर ही सही,
गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं।
ज़िन्दगी की असली उड़ान अभी बाकी है,
मंज़िल के कई इम्तिहान अभी बाकी है,
अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीं हमने,
अभी तो सारा आसमान बाकी है।
किनारों से मुझे ऐ नाखुदा दूर ही रखना,
वहाँ ले कर चलो, तूफान जहाँ से उठने वाला है।
दर्द, गम, डर जो भी है
बस तेरे अंदर हैं,
खुद के बनाये पिंजरे से निकलकर देख
तू भी एक सिकंदर हैं।
मत बैठ आशियाँ में परों को समेट कर,
कर हौसला खुली फिजाओं में उड़ान का।
कितने भी दलदल हों पैर जमाये ही रखना,
चाहे हाथ खाली हो उसे उठाये ही रखना,
कौन कहता है छलनी में पानी रुक नही सकता,
अपना हौसला बर्फ़ जमने तक बनाये रखना।
सदा एक ही रुख़ नहीं नाव चलती,
चलो तुम उधर को हवा हो जिधर की।
खुदा तौफीक देता है
उन्हें जो यह समझते हैं,
कि खुद अपने ही हाथों से
बना करती हैं तकदीरें।
थक कर बैठे हैं हार कर नहीं,
सिर्फ बाज़ी हाथ से निकली है ज़िंदगी नहीं।
मुश्किलें दिलों के इरादे आजमाएंगी,
ख्वाबों के परदे निगाहों से हटाएंगी,
गिरकर तुझे खुद ही संभालना है,
यह ठोकरें ही तुझे चलना सिखाएंगी।
कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन,
फिर इसके बाद थोड़ा सा मुक़द्दर तलाश कर।
Nida Fazli
तिनका हूँ तो क्या हुआ वजूद है मेरा,
उड़ उड़ के हवा का रुख तो बताता हूँ।
अगर पाना है मंज़िल तो
अपना रहनुमा खुद बनो,
वो अक्सर भटक जाते हैं
जिन्हें सहारा मिल जाता है।
अभी भी वक्त है
ख्वाबों को ताबीर कर डालो,
वफा को अपने माथे पर लिखो
और तकदीर कर डालो।
समुंदर में उतर लेकिन उभरने की भी सोच
डूबने से पहले... गहराई का अंदाज़ा लगा।
देखते हैं ये जिंदगी हमें कब तक भटकाएगी,
किसी दिन तो कोशिश हमारी भी रंग लाएगी,
उस रोज हम आराम से बैठेंगे अपने घर में,
और कामयाबी हमारा दरवाजा खटखटाएगी।
हयात ले के चलो कायनात ले के चलो,
चलो तो सारे जमाने को साथ ले के चलो।
जो खैरात में मिलती कामयाबी,
तो हर शख्स कामयाब होता,
फिर कदर न होती किसी हुनर की,
और न ही कोई शख्स लाजवाब होता।
मुश्किल नहीं है कुछ दुनिया में,
तू जरा हिम्मत तो कर।
ख्वाब बदलेंगे हकीकत में,
तू ज़रा कोशिश तो कर।
आंधियाँ सदा चलती नहीं,
मुश्किलें सदा रहती नहीं।
मिलेगी तुझे मंजिल तेरी,
बस तू ज़रा कोशिश तो कर।
तालीमें नहीं दी जाती परिंदों को उड़ानों की,
वे खुद ही तय करते है, ऊँचाई आसमानों की,
रखते हैं जो हौसला आसमां को छूने का,
वो नहीं करते परवाह जमीन पे गिर जाने की।
हौसले भी किसी हकीम से कम नहीं होते,
हर तकलीफ़ में ताकत की दवा देते हैं।
थक गये पैर लेकिन हिम्मत नहीं हारी,
जज्बा है जीने का, सफर है अभी जारी।
लकीरें खींचते रहने से बन गई तस्वीर,
कोई भी काम हो, बे-कार थोड़ी होता है।
जुगनुओं की रोशनी से तीरगी हटती नहीं,
आइने की सादगी से झूठ की पटती नहीं,
ज़िन्दगी में गम नहीं फिर इसमें क्या मजा,
सिर्फ खुशियों के सहारे ज़िन्दगी कटती नहीं।
सीढियाँ उन्हें मुबारक हों,
जिन्हे सिर्फ छत तक जाना है,
मेरी मंज़िल तो आसमान है,
रास्ता मुझे खुद बनाना है।
भँवर से लड़ो तुंद लहरों से उलझो,
कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे।
पंख ही काफ़ी नहीं हैं आसमानों के लिए,
हौसला भी चाहिए ऊंची उड़ानो के लिए।
इतिहास लिखने के लिए कलम की नहीं,
हौसलों की जरूरत होती है।
ये रास्ते ले ही जाएंगे मंजिल तक, तू हौसला रख,
कभी सुना है कि अंधेरे ने सुबह ना होने दी हो।
रख हौसला वो मंजर भी आयेगा,
प्यासे के पास चल के समन्दर भी आयेगा,
थक कर न बैठ ऐ मंज़िल के मुसाफिर,
मंज़िल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आयेगा।
हाथ बाँधे क्यों खड़े हो हादसों के सामने,
हादसे कुछ भी नहीं हैं हौसलों के सामने।
ये कह के दिल ने मेरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं।
न पूछो कि मेरी मंजिल कहाँ है,
अभी तो सफर का इरादा किया है,
न हारुंगा हौसला उमर भर,
ये मैंने खुद से वादा किया है।
जब हौसला बना लिया ऊँची उड़ान का,
कद देखना फिजूल है फिर आसमान का।
ज़िन्दगी ने सबकुछ लेकर एक यही बात सिखाई है,
खाली जेबों में अक्सर हौसले खनकते हैं।
अपने हौसलों पर जो ऐतबार करते हैं उन्हें,
मंज़िलें खुद पते बताती हैं रास्ते इंतज़ार करते हैं।