Maa Shayari

मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है,

कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है।

ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले आज,

दिन भर की मशक़्क़त से बदन टूट रहा है।

प्यार करना कोई तुम से सीखे,

दुलार करना कोई तुम से सीखे,

तुम हो ममता की मूरत,

दिल में बिठाई है मैंने यही सूरत,

मेरे दिल का बस यही है कहना,

ओ माँ तुम बस ऐसी ही रहना।

बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर,

माँ सबसे कह रही है कि बेटा मजे में है।

मेरा कातिल परेशान है मेरी माँ की दुआओं से,

वो जब भी वार करता है खंजर टूट जाता है।

पूछता है जब भी कोई दुनिया में मोहब्बत है कहाँ,

मुस्कुरा देता हूँ मैं और याद आ जाती है माँ।

माँ के बिना जिंदगी में कुछ नहीं,

तू ही बताए हमें क्या गलत क्या सही,

जिंदगी में माँ का होना जरूरी है,

माँ के साथ हर एक दुआ पूरी है।

इसलिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर,

मेरी शह-रग पे मेरी माँ की दुआ रखी थी।

एक मुद्दत से मेरी माँ नहीं सोई...

मैंने इक बार कहा था मुझे डर लगता है।

तेरी डिब्बे की वो दो रोटियाँ कहीं बिकती नहीं,

माँ महंगे होटलों में आज भी भूख मिटती नहीं।

खूबसूरती की इंतेहा बेपनाह देखी,

जब मैंने मुस्कुराती हुई माँ देखी।

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू,

मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना।

मैं जब भी देखता हूँ माँ की आँखों को तो लगता है,

यही वो एक जगह है अब तक जहाँ सच्चाई रहती है।

भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को,

जब हुये हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े।

खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से,

बासी भी हो गई हैं, तो लज़्ज़त वही रही।

मेरी तक़दीर में कभी कोई गम नहीं होता,

अगर तक़दीर लिखने का हक़ मेरी माँ को होता।

यूं ही नहीं गूंजती किलकारियां‬ घर आँगन‬ के कोने में,

जान हथेली‬ पर रखनी‪ पड़ती है माँ को माँ‬ होने में।

नींद भी भला इन आँखों में कहाँ आती है,

एक अर्से से मैंने अपनी माँ को नहीं देखा।

वो लम्हा जब मेरे बच्चे ने माँ पुकारा मुझे,

मैं एक शाख़ से कितना घना दरख़्त हुई।

जिसके होने से मैं खुद को मुक्कम्मल मानता हूँ,

मेरे रब के बाद मैं बस अपनी माँ को जानता हूँ।

बेसन की रोटी पर, खट्टी चटनी सी माँ...

याद आती है चौका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ।

बहुत बेचैन हो जाता है जब कभी दिल मेरा,

मैं अपने पर्स में रखी माँ की तस्वीर को देख लेता हूँ।

बच्चा था भूखा और आँखों में अश्क जरुर था,

उस फरिश्ते का करिश्मा भी एक फितूर था,

गोद में बसी माया ने उस भूख को भुला दिया,

माँ की लोरी के जादू ने उसे फिर से सुला दिया।

वो उजला हो के मैला हो या महँगा हो के सस्ता हो,

ये माँ का सर है इस पे हर दुपट्टा मुस्कुराता है।

भूल जाता हूँ परेशानियां ज़िंदगी की सारी,

माँ अपनी गोद में जब मेरा सर रख लेती है।

कल माँ की गोद में, आज मौत की आग़ोश में,

हम को दुनिया में ये दो वक़्त बड़े सुहाने से मिले।

दिल तोड़ना आज तक नहीं आया मुझे,

प्यार करना माँ से जो सीखा मैंने।

हादसों की गर्द से खुद को बचाने के लिए,

माँ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे।

दुआएं माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं,

कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है।

कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे,

माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी।

बुजुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता,

कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता।

मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊँ,

माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ।

देखा करो कभी अपनी माँ की आँखों में,

ये वो आईना है जिसमें बच्चे कभी बूढ़े नहीं होते।

थक गया हूँ रोटी के पीछे भाग-भाग कर,

थक गया हूँ सोती रातों में जाग-जाग कर,

काश मिल जाये वही बीता हुआ बचपन,

जब माँ खिलाती थी पीछे भाग-भाग कर,

और सुलाती थी रात भर जाग-जाग कर।

खुद को कभी इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे,

माँ तुझे हम कभी बूढ़ा नहीं होने देंगे।

डांट कर अपने बच्चों को अकेले में रोती है,

वो माँ है और माँ ऐसी ही होती है।

घेर लेने को मुझे जब भी बलाएँ आ गईं,

ढाल बन कर सामने माँ की दुआएँ आ गईं।

सुला दिया माँ ने भूखे बच्चे को ये कहकर,

परियां आएंगी सपनों में रोटियां लेकर।

कौन सी है वो चीज़ जो यहाँ नहीं मिलती,

सब कुछ मिल जाता है पर माँ नहीं मिलती।

मैं रात भर जन्नत की सैर करता रहा दोस्तो,

आँख खुली तो देखा मेरा सर माँ के गोद में था।

ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं,

इस जहाँ में जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं।

पहले ये काम बड़े प्यार से माँ करती थी,

अब हमें धूप जगाती है तो दुःख होता है।

उस रब ने माँ को यह ताक़त कमाल दी,

उसकी दुआ पर हर मुसीबत भी टाल दी,

माँ के प्यार की कुछ इस तरह मिसाल दी,

कि जन्नत उठाकर माँ के क़दमों में डाल दी।

एक हस्ती है वो जो जान है मेरी,

जो आन से बढ़ कर मान है मेरी,

खुदा हुक्म दे तो कर दूँ सजदा उसे,

क्यूंकि वो कोई और नहीं माँ है मेरी।

है गरीब मेरी माँ फिर भी मेरा ख्याल रखती है,

मेरे लिए रोटी और अपने लिए पतीले की खुरचन रखती है।

क्या सही है क्या गलत वो हमेशा मुझे समझाती है,

मैं खाना नहीं खाता तो वो भी कहां कुछ खाती है,

और अपने बच्चो के लिए कुछ पैसे बचा लूँ,

ये सोचकर माँ घर पैदल चली आती है।

तू ने तो रुला के रख दिया ऐ ज़िन्दगी,

जा कर पूछ मेरी माँ से कितना लाड़ला था मैं।

ऐ मुसीबत जरा सोच समझकर आना,

माँ की दुआ तुझे मुसीबत ना बन जाए।

दुआ को हाथ उठाते हुए लरज़ता हूँ,

कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए।

दिन भर की मशक्कत से बदन चूर है लेकिन,

माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है।

आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम,

कागज पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ।

माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना,

जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती।

ज़ख्म जब बच्चे को लगता है तो माँ रोती है,

ऐसी निस्बत किसी और रिश्ते में कहाँ होती है।

बद्दुआ संतान को इक माँ कभी देती नहीं,

धूप से छाले मिले जो छाँव बैठी है सहेज।

तेरे क़दमों में ये सारा जहान होगा एक दिन,

माँ के होठों पे तबस्सुम को सजाने वाले।

माँ तेरे दूध का हक मुझसे अदा क्या होगा,

तू नाराज है तो खुश मुझसे खुदा क्या होगा।

सूना-सूना सा मुझे ये घर लगता है,

माँ जब नहीं होती तो बहुत डर लगता है।

माँ तेरी याद सताती है, मेरे पास आ जाओ,

थक गया हूँ, मुझे अपने आँचल में सुला जाओ,

उँगलियाँ अपनी फेर बालों में मेरे,

एक बार फिर से बचपन की लोरियां सुना जाओ।

बुझतें हुए दीये पे हवा ने असर किया,

माँ ने दुआएं की तो दवा ने असर किया।

यूँ तो मैंने बुलन्दियों के हर निशान को छुआ,

जब माँ ने गोद में उठाया तो आसमान को छुआ।

माँ की अजमत से अच्छा जाम क्या होगा,

माँ की खिदमत से अच्छा काम क्या होगा,

खुदा ने रख दी हो जिस के कदमों में जन्नत,

सोचो उसके सर का मुकाम क्या होगा।

नहीं हो सकता कद तेरा ऊँचा किसी भी माँ से ऐ खुदा,

तू जिसे आदमी बनाता है, वो उसे इंसान बनाती है।

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,

माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।

पहाड़ो जैसे सदमे झेलती है उम्र भर लेकिन,

बस इक औलाद की तकलीफ़ से माँ टूट जाती है।

माँग लूँ यह दुआ कि फिर यही जहाँ मिले,

फिर वही गोद मिले फिर वही माँ मिले।

किताबों से निकल कर तितलियाँ ग़ज़लें सुनाती हैं,

टिफ़िन रखती है मेरी माँ तो बस्ता मुस्कुराता है।

कदम जब चूम ले मंज़िल तो जज़्बा मुस्कुराता है,

दुआ लेकर चलो माँ की तो रस्ता मुस्कुराता है।