अभी-अभी कुछ गुजरा है,
लापरवाह, धूल में दौड़ता हुआ,
जरा पलट कर देखूं तो,
बचपन था शायद।
फिक्र सोती थी चैन से पहले,
अब मुझे रात भर जगाती है।
याद आता है वो बीता बचपन,
जब खुशियाँ छोटी होती थी.
बाग़ में तितली को पकड़ खुश होना,
तारे तोड़ने जितनी ख़ुशी देता था।
अब तक हमारी उम्र का बचपन नहीं गया,
घर से चले थे जेब के पैसे गिरा दिए।
बचपन भी कमाल का था,
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें,
या ज़मीन पर,
आँख बिस्तर पर ही खुलती थी।
एक बचपन का जमाना था,
जिस में खुशियों का खजाना था.
चाहत चाँद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दिवाना था
खबर ना थी कुछ सुबह की,
ना शाम का ठिकाना था
थक कर आना स्कूल से,
पर खेलने भी जाना था
माँ की कहानी थी,
परीयों का फसाना था।
किसने कहा, नहीं आती वो बचपन वाली बारिश,
तुम भूल गए हो शायद अब नाव बनानी कागज़ की।
काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था,
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था,
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में,
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।
बचपन में सोचता था चाँद को छू लूँ,
आपको देखा वो ख्वाहिश जाती रही।
कौन कहता है वक़्त दोहराता है अपने आप को,
अगर ये सच है तो मेरा बचपन तो लौटाए कोई।
बचपन के दिन भी कितने अच्छे होते थे,
तब दिल नहीं सिर्फ खिलौने टूटा करते थे,
अब तो एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता,
और बचपन में जी भरकर रोया करते थे।
उम्र-ए-रवां फिर न कभी मुस्कुराई बचपन की तरह,
मैंने गुड़िया भी खरीदी, खिलौने भी ले कर देखे।
दौड़ने दो खुले मैदानों में,
इन नन्हें कदमों को साहब,
जिंदगी बहुत तेज भगाती है,
बचपन गुजर जाने के बाद।
खूबसूरत था इस कदर कि महसूस न हुआ,
कैसे, कहाँ और कब मेरा बचपन चला गया।
क्यों वक़्त के साथ रंगत खो जाती है,
हँसती खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है,
एक सवेरा था जब हँसकर उठा करते थे हम,
आज बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है।
और तो कुछ नहीं बदला उम्र बढ़ने के साथ,
बचपन की जो ज़िद थी समझौतों में बदल गई।
वो बचपन की अमीरी न जाने कहां खो गई
जब पानी में हमारे भी जहाज चलते थे...।
सुकून की बात मत कर ऐ दोस्त,
बचपन वाला इतवार अब नहीं आता।
शायद फिर से वो तक़दीर मिल जाए,
जीवन के वो हसीन पल मिल जाए,
चल फिर से बैठे क्लास की लास्ट बैंच पर,
शायद वापस वो पुराने दोस्त मिल जाए।
नींद तो बचपन में आती थी,
अब तो बस थक कर सो जाते हैं।
वह बचपन की नींद तो अब ख्वाब हो गयी,
क्या उम्र थी के रात हुयी और हम सो गए।
तुझसे बिछड़ के बचपन का ये भेद खुला,
क्यों लिखता था मैं पैरो पे तन्हा तन्हा।
Ahmad Faraz
बचपन चवन्नी से हरे नोट में बदल गया,
मगर बाजार बंद हो गया खुशियों का।
वो बेपरवाह बचपन वो छोटी छोटी ख्वाहिशें,
बस हँसी और सिर्फ हँसी कितने रईस थे हम।
वो बचपन की बातें वो बचपन की यादें,
हम को हरदम बहुत ही याद आती हैं,
अब तो हमको बस ये देखना है बाकी,
कि ये जिंदगी हमको कहाँ लेकर जाती है।
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो,
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे।
Nida Fazli
काश मैं लौट जाऊं उन बचपन की गलियों में,
जहाँ न कोई जरूरत थी और न ही कोई जरुरी था।
ना कुछ पाने की तमन्ना ना कुछ खोने का डर,
बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर,
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का हर पल।
चलो आज बचपन का कोई खेल खेलें,
बड़ी मुद्दत हुई बेवजह हंसकर नहीं देखा।
वो बचपन के दिन भी क्या खूब थे,
जहाँ न दोस्त का मतलब पता था
और न मतलब की दोस्ती।
कोई मुझको लौटा दे वो बचपन का सावन,
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी।
जिस्म पर जो जख्म के निशान हैं, वो बचपन के हैं,
बाद के तो सारे दिल पर हैं।
काश वो दिन लौट आये
जब नींद बड़ी बेफिक्र आती थी,
आँखें खुलती थी रोज
नयी दुनिया नजर आती थी।
Daagh Dehlvi
ये बात समझने में उम्र बीत गई गालिब,
बचपना करने से बचपन वापिस नहीं आता।
कितने खुबसूरत हुआ करते थे
बचपन के वो दिन,
सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से,
दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी।
मैं गया था सोच कर, बात बचपन की होगी,
दोस्त मुझे अपनी तरक्की सुनाने लगे।
बचपना अब भी वही है हम में,
बस जरूरतें बड़ी हो गयीं हैं।
और एक दिन देखते देखते खर्च हो गयी जिन्दगी,
फिजूलखर्ची की आदत थी बचपन से मुझे।
देर तक हँसता रहा उन पर हमारा बचपना,
जब तजुर्बे आए थे संजीदा बनाने के लिए।
परेशान हूँ कि परेशानी नहीं जाती,
बचपन तो गया मगर नादानी नहीं जाती।
बचपन में तो शामें भी हुआ करती थी,
अब तो बस सुबह के बाद रात हो जाती है।
इतनी चाहत तो लाखों रुपए
पाने की भी नहीं होती,
जितनी बचपन की तस्वीर देख कर
बचपन में जाने की होती हैं।
मेरा बचपन भी साथ ले आया,
गाँव से जब भी आ गया कोई।
बचपन में जब चाहा हँस लेते थे,
जहाँ चाहा रो सकते थे,
अब मुस्कान को तमीज चाहिए,
अश्कों को तनहाई।
बचपन के दिन भी क्या खूब थे,
बे-नमाजी भी थे और बे-गुनाह भी।
अजीब सौदागर है यह वक़्त भी,
जवानी का लालच देके बचपन ले गया।