जब कभी थक जाओ दुनिया की महफिलों से,
हमें आवाज दे देना, हम अक्सर अकेले होते हैं।
सच कहा था किसी ने तन्हाई में रहना सीख लो,
मोहब्बत कितनी ही सच्ची हो अकेला छोड़ जाती है।
तुम्हारी यादों से हमारा कोई नाता तो नहीं था,
पर तुम्हें भूल जाना हमें आता तो नहीं था,
यूं तो उम्र गुजरी है तुमसे पहले भी तन्हा मेरी,
मगर तब अकेलापन हमें यूं सताता तो नहीं था।
निकले हम दुनिया की भीड़ में तो पता चला,
कि हर वह शख्स अकेला है जिसने मोहब्बत की है।
वो भी बहुत अकेला है शायद मेरी तरह,
उस को भी कोई चाहने वाला नहीं मिला।
ख्वाब बोये थे और अकेलापन काटा है,
इस मोहब्बत में बहुत घाटा है।
अकेला हूँ, तन्हा हूँ, जिंदगी भर रहूंगा शायद,
ऐ खुदा काश मेरे भी कोई पास होता,
मेरे अश्कों को होता जो कोई पोंछने वाला,
तो मैं तन्हा यूं न सारी-सारी रात रोता।
दिलशिकन साबित हुआ, हर आसरा मेरे लिए,
कोई दुनिया में नहीं, मेरे सिवा, मेरे लिए।
Natik Lakhnawi
तुम बिन मेरी जात अधूरी, जैसे कोई बात अधूरी,
हिज्र के सारे दिन पूरे, लेकिन है हर रात अधूरी।
तन्हाई में हम तेरी तकते हैं राहें,
तुम्हें देखने को तरस जाती है निगाहें,
बेखुदी का अब ये आलम है कैसा,
तुम्हें याद करके निकल जाती हैं आहें।
खुद भी वो हमसे बिछड़ कर अधूरा सा हो गया,
मुझको भी इतने लोगों में तन्हा बना दिया।
मैं तन्हाई को तन्हाई में तन्हा कैसे छोड़ दूँ
तन्हाई ने तन्हाई में तन्हा मेरा साथ दिया है।
हर रात गुजरती है मेरी तारों के दरमियाँ।
मैं चाँद तो नहीं मगर तन्हा जरूर हूँ।
गीले कागज की तरह है जिंदगी अपनी,
कोई जलाता भी नहीं कोई बहाता भी नहीं,
इस क़दर है अकेले राहों में दिल की,
कोई बुलाता भी नहीं कोई बतलाता भी नहीं।
माना कि आज उसका मुझसे
कोई वास्ता नहीं रहा,
मगर आज भी उसके हिस्से का
वक्त तन्हा गुजरता है।
वो हर बार मुझे छोड़ के चली जाती है तन्हा,
मैं मजबूत बहुत हूँ लेकिन कोई पत्थर तो नहीं हूँ।
चिराग कोई जलाओ कि हो वजूद का एहसास,
इन अँधेरों में मेरा साया भी छोड़ गया मुझको।
चाँद भी झांकता है अब खिड़कियों से,
मेरी तन्हाई के चर्चे अब आम है।
तन्हाई के लम्हात का एहसास हुआ है,
जब तारों भरी रात का एहसास हुआ है।
Naseem Shajahanpuri
हम दोनों मिल बैठेंगे तो रात गुजर जाएगी,
तन्हाई का मुझसे ये कहना बहुत अच्छा लगा।
तुम नहीं आओगे जब फिर भी तो तुम आओगे,
जुल्फ दर जुल्फ बिखर जायेगा फ़िर रात का रंग,
शब्-ए-तन्हाई में भी लुत्फ़-ए-मुलाक़ात का रंग।
हर तरफ आप हैं तसव्वुर में,
मेरी तन्हाइयाँ सुभान अल्लाह।
शोर है, हंगामा आरायी है,
जिंदगी, तू कहाँ ले आई है,
नफ्सा नफ़सी का अजीब आलम है,
भीड़ है, मगर तन्हाई है।
धड़कनें गूँजती हैं सीने में,
इतने सुनसान हो गए हैं हम।
कम से कम तन्हाई तो साथी है,
अपनी जिंदगी के हर एक पल की,
चलो ये शिकवा भी दूर हुआ कि,
किसी ने साथ नहीं दिया।
हर किसी की किस्मत में कहाँ लिखी हैं चाहतें,
कुछ लोग दुनिया में आते हैं तन्हाइयों के लिये।
मुझ में इतनी वीरानी है
चुप हूँ फिर भी... गूँज रहा हूँ।
रात एक भीगे हुए तकिये ने,
मेरी तन्हाई का आलम अफशां कर दिया।
मेरी तन्हाई को जरुरत है तुम्हारी मोहसिन
अगर इजाज़त हो तो यादों मैं बसा लूँ तुमको।
Mohsin Naqvi
सुला के सबको गहरी नींद में,
फिर अकेला क्यूँ अंधेरा जागता है।