Aitbaar Shayari

तोड़ कर जोड़ लो चाहे हर चीज़ दुनिया की,

सबकी मरम्मत मुमकिन है ऐतबार के सिवा।

जोरों से हँस पड़े हम बड़ी मुद्दतों के बाद,

फिर कहा किसी ने कि मेरा ऐतबार कीजिये।

हर बात जानते हुए भी दिल मानता न था,

हम जाने ऐतबार के किस मरहले में थे।

तुझ पे कुछ ऐतबार था वरना,

दिल भला कौन उधार देता है।

अच्छा होता जो उनसे प्यार न हुआ होता,

चैन से रहते हम जो दीदार न हुआ होता,

पहुँच चुके होते हम अपनी मंज़िल पर,

अगर एक बेवफा पर ऐतबार न हुआ होता।

तेरी निगाह में एक रंग-ए-अजनबियत था,

किस ऐतबार पे हम खुल के गुफ्तगू करते।

दुनिया फ़रेब करके हुनरमंद हो गई,

हम ऐतबार करके गुनाहगार हो गए।

वो कह कर गया था कि लौटकर आएगा,

मैं इंतजार ना करता तो और क्या करता,

वो झूठ भी बोल रहा था बड़े सलीके से,

मैं एतबार ना करता तो और क्या करता।

हमने जब ऐतबार किया सर्द रात पर,

सूरज उदास हो गया, इतनी सी बात पर।

जादू है या तिलिस्म है तुम्हारी जुबान में,

तुम झूठ कह रहे थे मुझे ऐतबार था।

मेरी तरफ से तो टूटा नहीं कोई रिश्ता,

किसी ने तोड़ दिया ऐतबार टूट गया।

खुद की हालत का मुझे एहसास नहीं होता,

आँखें तब बरसती हैं जब कोई पास नहीं होता,

दिल से चाहने वाले ही दिल तोड़ देते है,

बस इसी बात का तो ऐतबार नहीं होता।

तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते,

अगर अपनी ज़िन्दगी पर हमें ऐतबार होता।

गजब किया तेरे वादे पर ऐतबार किया,

तमाम रात किया क़यामत का इंतज़ार किया।